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Tuesday 12 May 2015

प्रयास एकता का

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मेरे वीर दुर्गादास ! लौट के रे ! लौट के !


पाल पोष बड़ा किया था राज्य भी लौटा दिया,


काश मेरे कुल की रीत देश से निकाल दिया !


मेरी कृतध्नता को वीर एक बार भूल जा !

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तेरी समाधी चीखती है वियोगनी सी बनी,


उसी के आंसुओं से क्षिप्रा हो गयी मन्दाकिनी !


तेरी ही यादगार की तू याद ले के जा रे ! ! 

घोडे की पीठ पर भी रोटी सेकना नहीं सुना ,


ठोकर लगाये राज्य के वो सिपाही ना सुना !


उपेक्षितों की धडकनों को आज सुनके जा रे ! !!

प्रयास एकता के तेरे देश नहीं भुलायेगा ,


तेरे बिना बिछुडों हुओं को कौन एक बनाएगा !


टूटी हुई है श्रंखला, ये कड़ी तो जोड़ के जा !!

दुश्मन के दास हो गए स्वतंत्रता गुमा दी है ,


तेरी अमूल्य थातियों को कौडियों में खो दी है !


राजा से रैंक हो गए अब लौट के रे ! !!


अरे गगन के बादलो मेरा सन्देशा लेके जा !

मुझसे सहा जाता है, व्यथा मेरी तू लेके जा !


करता पुकार दुखी हुआ सान्तवानाएँ देके जा !! 

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स्व. श्री तनसिंह जी, उज्जैन 11 फरवरी 1959

 राजस्थानी

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